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Monday 14 June, 2010



एक ग़ज़ल 
जिंदगी आसान हो तो, जिंदगी में क्या मज़ा 
दर्द दिल में ना अगर हो, धड़कनों में क्या बचा...

अश्क आँखों से बहाए मोम की मानिंद पर 
जब वो पत्थर ही न पिघला , भीगेपन से क्या मिला...

 गुल, सितारे, चांदनी औ ओस की बूँदें यहाँ 
इस ज़मीं पर न रहें तो , मेरी खातिर क्या बचा...

तोड़ कर खुशियों के धागे , ग़म की एक चादर बुनूं 
ओढ़ उसको सो रहूँ , काटूं हंसाने की सज़ा...!!
   


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